शांतनु लेखक: सिद्धार्थ छाया (मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण) पन्द्रह “हां...” शांतनु ने इतना ही जवाब दिया| “क्या हुआ था?” अनुश्री ने पूछा| “ब्रेस्ट केन्सर... दो साल पहेले ही...” शांतनु ने वाक्य को अधुरा छोड़ दिया| “सेड... पेरेन्ट के जाने से कितना दुःख होता है, मुझे भी उसका अनुभव है|” “हमम... पप्पा ने बहुत सेवा की और डॉक्टर्स ने भी काफ़ी कोशिश की पर आखिर वही हुआ जो होना था|” शांतनु के स्वर में निराशा थी| “आई नो... अंकल भी अकेले हो गए होंगे ना? तुम तो जॉब और फ्रेंड्ज़