नवम्बर २०१८ की कविताएं१.पेड़ों की तरह उगते हैं हम,घने भी होते जाते हैं,धीरे-धीरे छायादार बनते हैं।कालान्तर में आकाश की तरफ बढ़ते,बहुत ऊँचे हो जाते हैं।जड़ों से मजबूत हों तो,किसी तूफान में टूटते नहीं,हमारी शाखाएं लम्बी-चौड़ी होकभी काटी जाती हैं,कभी सूख कर गिर जाती हैंकभी कल्पवृक्ष बनी रहती हैं।२.उसने पूछा,प्यार में कुछ शेष रह गया था,उत्तर मिलासब कुछ शेष रह गया थाकुछ भी सम्पूर्ण नहीं हुआ।बातें जहाँ से आरम्भ कींकुछ कदम चलकर लड़खड़ायीं,हाथ जहाँ तक बढ़ायावहीं रूक गया,संवाद जहाँ टूटाफिर जुड़ नहीं पाया।आगे बतायाप्यार में सब कुछ गोलाकार घूमता है,एक सुबह के बाद दूसरी सुबह आ जाती है,एक शाम के बाद