भीगे पंख - 2

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मानिकपुर ग्राम की भादों माह के कृष्णपक्ष की द्वितीया की वह रात्रि उस मौसम की घोरतम कालिमामय रात्रि थी- सायंकाल के पूर्व ही आकाश शांत और गम्भीर होने लगा था और फिर शन्ैा शनै पश्चिम दिशा से भूरे और काले रुई के भीमकाय फोहों जैसे बादल आकाश मे छाने लगे थे- पहले इक्के दुक्के फुटकर और फिर घटाटोप। सूर्यास्त होते ही घने अंघकार का साम्राज्य समस्त ग्राम मे फैल गया था। घनघोर वर्शा की आषंका के कारण चरवाहे अपने ढोरों को जल्दी ही घर वापस ले आये थे। खेतों और बागों मे दाना-कीड़ा चुगने वाले मोर, आंगन मे फुदकने वाले गौरैया, और गांव में मटरगश्ती करने वाले कुत्ते आने वाले तूफा़न का पूर्वाभास पाकर आज जल्दी ही अपने अपने शरणस्थलों मे दुबक गये थे।