जीत अभी भी गहरी नींद में सोया हुआ था। दिलशाद ने खिड़की खोल दी। एक पूरा टुकड़ा आकाश का खिड़की का अतिक्रमण कर दिलशाद की आँखों में उमड़ गया जो अपने साथ बर्फीली हवा के टुकड़े भी लाया था। खिड़की के उस पार था पहाड़ों का जंगल। सूरज निकल आया था। पहाड़ों के ढलान पर जमी हिम पर यात्री अपने अपने आनंद में व्यस्त हो गए थे। मन तो करता है कि दौड़ जाऊँ हिम के बीच। पर यह जीत, अभी भी सो रहा है। मैं क्या करूँ? दिलशाद ने जीत को देखा। वह सो रहा था। दिलशाद ने अपनी इच्छा को भी सुला दिया। प्रतीक्षा करने लगी, जीत के जागने की।