जीत मौन तो था किन्तु अशांत था। जीवन के जिस अध्याय को मैं पीछे छोड़ चुका हूँ, जिसे छोड़ देने के पश्चात कभी याद नहीं किया, याद करना भी नहीं चाहता था किन्तु, वफ़ाई उसी अध्याय को पढ़ना चाहती है। तप्त मरुभूमि में सब संबंध, सब वार्ता, सभी स्मरण, सब कुछ भस्म कर दीया था मैंने। वफ़ाई, तुम मुझे स्मरणों की अग्नि में पुन: जला रही हो। तुम नहीं जानती की स्मरणों की अग्नि कितनी तीव्र होती है, कितनी घातक होती है। तो भाग जाओ इन स्मरणों से, बच निकलो उसकी अग्नि से। आज तक उसे याद नहीं किया तो