“वफ़ाई, तुम अधिक बोलती हो। क्या तुम चुप नहीं रह सकती?” जीत ने वफ़ाई के प्रति क्रोध से देखा। वफ़ाई ने मीठे स्मित से जवाब दिया। पिछली रात से ही जीत ने मौन बना लिया था जो भोर होने पर भी बना हुआ था। वफ़ाई उसे बारंबार तोड़ रही थी। प्रत्येक बार जीत ने उसकी उपेक्षा की थी। पिछले पाँच घंटों में वफ़ाई ने सत्रहवीं बार मौन भंग करके दोनों के बीच टूटे हुए संबंध को जोड़ने का प्रयास किया था किन्तु जीत कोई रुचि नहीं दिखा रहा था। वफ़ाई हिम को पिघला ना सकी। तपति दोपहरी हो गई।