डॉलर का मारा मारा - व्यंग्य लेख

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नमस्ते देश के प्रेमी और प्रेमिकाओ, कवियों और कवियत्रीयो, मेरे जैसे बिना समझने वाले भाई और बहनों।आज-कल देेश में , रूूपया की तबीयत काफी समय से खराब चल रही है। देेश मैं कुछ लोगों को इनकी चिंता खाये जा रही हैं।आज सवेरे सवेरे ,मे घूमने गया तो फेंकूमल मिल गए,कसम मच्छर के दांतो की,क्या खूब लग रहे थे। मेरे को देखते ही हो गए मेरे पिछे,मैंने भगवान से कहा हे प्रभु, मैंने तुम्हारी कौनसी भैंस चुराई जो सवेरे सवेरे फेंकूमल से मिलवा दिया। खैर जो भी हो अब फेंकूमल से बचना मुश्किल ही नही ना मुमकिन है। आखिर मेरे पास पहुंच ही