शरद से अमावस तक की यात्रा चन्द्रमा

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काव्य की बाहरी शोभा को बढ़ाने वाले धर्म हीं अलंकार कहलाते है ।। इस धर्म का फल काव्य का अलंकरण है । काव्य और प्रेम दोनों का नैसर्गिक संबध है इसलिए चन्द्रमा दोनों को अपने किनारे तटस्थ करता है और अलंकार के रुप में दोनों और निरंतर बह रहा है सदियों से ।। काव्य जिस तरह पूर्ण नहीं अलंकार से प्रेम पूर्ण नहीं उसी प्रकार बिना श्रृंगार के ।। यह एक प्रेमी की स्वच्छंदता है जो अपने प्रिय को चांदनी के बिच जगमगाता देखना चाहता है ।। चन्द्र प्रेमी और प्रेमिका दोनों को अलंकृत करता है इसलिए चन्द्र में ताप नहीं शीतलता है और रात में ये पूर्ण रुप से नयनों का अमृत पियूष है ।।