वही कृष्ण है वही अंग है अंतर केवल इत्ता है । प्रेम को त्यागा अब उसने अब तो केवल सत्ता है। प्रेम को त्याग दिया है अब वो छोड़ी ब्रज की नगरी है। छूट गया मिठा यमुना जल पहुचा खारी नगरी है। जिन हाथों मे लेकर पर्वत बना था वो सब का रक्षक। उसी हाथों मे लिए शुदर्शन बना आज वो एक भक्षक। वही कृष्ण है वही अंग है अंतर केवल इत्ता है । प्रेम को त्यागा अब उसने अब तो केवल सत्ता है। दस उंगली मे रहती थी जो बंसी से टूटा विश्वास इक उंगली मे लिए शुदर्शन करते हो दुष्टो का नाश। प्रेम रूप गर धारे होते