अगले दिन संयोजक ने ये कह कर कि, “लेखकों, कवियों को एक अच्छा मंच चाहिए। और समाज को अच्छे लेखक, अच्छे कवि। जो समाज को सही रास्ता दिखा सकें। हम वही मंच हैं।” और सभा शुरू हुई। रमता ने जब मंच पर कहानी पढ़ी तो श्रोता सन्न रह गए। कहानी का एक-एक शब्द समाज को नंगा करता जान पड़ रहा था। बीच-बीच में दो-चार तालियों की आवाज़ भी उठ जाती थी। शायद समाज अपना सच बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। या समझ नहीं पा रहा था। कहानी के अन्त में कुछ लोगों ने, जो कहानी का मर्म समझे उन्होंने कहानी पर तालियाँ बजा दीं। बाक़ी को भी औपचारिकता वश पीछे बजानी पड़ीं।