हिम स्पर्श - 16

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मरुभूमि मौन थी। हवा मौन बह रही थी, मौन गगन देख रहा था, बादल भी मौन यात्रा कर रहे थे, रेत मौन पड़ी थी, मार्ग मौन थे, पंखी भी मौन उड़ रहे थे। सब कुछ मौन था, शांत था। केवल दोनों के मन अशांत थे। दोनों बात करना चाहते थे, एक दूसरे को जानना चाहते थे किन्तु कोई भी बात नहीं कर रहा था। दोनों प्रतीक्षा कर रहे थे कि सामनेवाला बात प्रारम्भ करे। दोनों मौन थे अत: दोनों अशांत थे। दोनों चित्र को बिना किसी उद्देश्य से देख रहे थे। चित्र शांत एवं मौन था। किन्तु चित्र में बसे आकार शांत नहीं थे, वह कुछ कह रहे थे।