दरवाजे को ढकेलते हुए जैसे ही मैं क्लास की ओर बढ़ी तो सबकी निगाहें मुझपर ठहर गयी जोकि एक साधारण बात थी लेकिन न जाने क्यों वो नजरें मुझे घूरती हुई प्रतीत हो रही थी जैसे किसी ने मेरी चोरी पकड़ ली हो। आज मैनें नजरों को ऊपर न उठाया और जाकर पीछे खाली पडी डेस्क पर अकेली बैठ गयी। रोज की तरह आज मेरी नजरे अपने टीचर की तरफ न होकर डेस्क में गढ़ी रही। सब लेक्चर के दौरान खामोश थे और मैं भी लेकिन अंतर था तो सिर्फ इतना कि वो सब क्लास में ही थे लेकिन मैं क्लास में रहकर भी कहीं और।