हिम स्पर्श - 14

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वफ़ाई सीधे मार्ग पर जीप चला रही थी। मार्ग अंधकार भरा था। गगन में अंधेरी रात का प्रभुत्व था। वह मार्ग को देखते जा रही थी। पहले तो यह मार्ग ज्ञात लग रहा था किन्तु धीरे धीरे वह अज्ञात सा लगने लगा। मरुभूमि भी अज्ञात लगने लगी। जो मरुभूमि को वह चार पाँच दिनों से जानती थी वह कोई भिन्न थी। यह कोई दूसरी भूमि थी। वफ़ाई ने संदेह के साथ स्वयं से पूछा,”वफ़ाई, तुम इस मरुभूमि को जानती हो?” “कुछ कह नहीं सकती। यह मरुभूमि, यह मार्ग और यह रात्री उस घर तक नहीं जाते जहां तुम जाना चाहती