स्वाभिमान - लघुकथा - 46

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इलाहाबाद से रांची के लिए खुली ट्रेन तेज गति से आगे की ओर भाग रही थी। खिड़की से बाहर देख रहे पांडे जी के दिमाग का पहिया बाहरी दृश्यों के साथ- साथ पीछे की ओर जाने लगा।सीट पर साथ में बैठी पत्नी से बोले-जानती हो! पिछले सप्ताह जब तुम्हें और मुन्ने को वापस लाने के लिए मैं इसी ट्रेन से इलाहाबाद आ रहा था तो ट्रेन में मैंने 10-11 वर्ष के एक बच्चे को भीख मांगते हुए देखा।