स्वाभिमान - लघुकथा - 41

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-“शादी का लहंगा लेने के लिए ताई-ताऊ जी को साथ लेने की क्या ज़रूरत है बेटा?” -“माँ, हमारा बजट तो तुम जानती हो ना!” - “सपना, तुमनें हमेशा मेरी बात को समझा है फ़िर आज किसी से उम्मीद क्यों?” -“माँ कभी तो बजट के बाहर जी लेने दो ना!” -“पर यदि उन्होंने उस महँगे लहँगे के पैसे नहीं दिए तो?”