स्वाभिमान - लघुकथा - 22

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हथकरघे पर बैठी गौरा को देख, सुबोध चहक कर बोला- चाची जी, दोनों गलीचे तुरन्त बिक गए। सुबोध, सच्ची ! आप सुंदर धागों और रंगों को बुनकर, जादुई डिज़ाइन का ऐसा ताना बाना बुनती हो कि देखते ही सबके मुख से 'वाह' निकलता है । ये लीजिये 20, 000 रूपये ।