स्वाभिमान - लघुकथा - 8

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पहले कुछ धुंधला-सा दिख रहा था लेकिन अब सब स्पष्ट दिख रहा है। एक औरत को बीच सड़क पर बाँधकर खड़ा किया गया है। वह मुँह झुकाए खड़ी है। उसका 'माथा' लहुलुहान है। उसके 'गले' के पास से रक्त बह रहा है जिससे आस-पास की जमीन लाल हो चली है। उसका स्वाभिमान छिन्न-भिन्न हो चुका है। अब वह लाचार हो अपने दोनों हाथ फैलाकर सहायता की गुहार लगा रही है।