अब हर आहट पर डरने लगा हूं। कीचड़ की गंध भी मुझ में सिरहन पैदा कर देती है। तन्हा पन का एहसास तो कोसों दूर है। अब तो लगता है हर कोई मुझे टकटकी लगाकर घूर रहा है। इंसानों से न तो ज्यादा करीबी और न ही ज्यादा दूरी बर्दाश्त होती है। पता नहीं कौन आकर कह दे तुम भी भुगतोगे।विकास के रूम से आने के बाद जैसे तैसे खुद को समेट कर तैयार होकर कॉलेज गया। अब डायरी पीछे बैग में ही रखता हूं पता नहीं कौन सा लम्हा मेरा आखिरी लम्हा हो। मैं पढ़ाने की हालत में नहीं