इकतारे वाला जोगी - 2

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आभा की किशोरवयः पुत्री शुभ्रा भी मांँ की मनःस्थिति को ना समझते हुए उसके रोग का कारणभूत जोगी के इकतारे को समझती है और जोगी को हमेशा-हमेशा के लिए उस शहर को छोड़कर कहीं दूर चले जाने के लिए कहती है । आभा को जब यह ज्ञात होता है तब बीमार आभा इतनी आहत होती है कि वह कोमा में चली जाती है । इसके छः साल बाद जब शुभ्रा उसी दौर से गुजरती है , जिस दौर में उसकी माँँ ने अपने सपनों को अपनों की खुशी के लिए दफन कर दिया था , तब शुभ्रा को मांँ द्वारा सुनाई गई वह कहानी याद आती है , जिसमें शुभ्रा को यह संकेत मिलता है कि कहानी का राजकुमार कोई और नहीं, मांँ के मन का मीत है । संकेत पाते ही ।शुभ्रा माँँ को वही सुख देने का संकल्प करती हैं , जिसकी वह अधिकारिणी है । कहानी के अन्त तक वह आंशिक सफलता प्राप्त कर लेती है ।