इकतारे वाला जोगीछः वर्ष पश्चात् ...छः वर्ष बीत चुके थे। शुभ्रा अब किशोर वयः के अन्तिम पड़ाव पर थी। न जाने कब बासन्ती सुगंधित बयार का कोई झोंका आकर उसकी साँसों को महका गया था । अब यह सुगंध उसकी साँसों में बस चुकी है । इस सुगन्ध के बिना शुभ्रा की साँसें उदास हो जाती हैं ; जीवन नीरस-निरर्थक प्रतीत होता है । शुभ्रा ने इस विषय पर कभी गम्भीरतापूर्वक विचार नहीं किया था , किन्तु उस समय वह आश्चर्यचकित रह गयी , जब उसकी दादी ने उसके विवाह का प्रस्ताव रखकर वर के चयन हेतु कुछ अल्प परिचित-अपरिचित