उसकी जगह कोई और उसके खुबसुरत बदन को आज मजे से लूट रहा था। खलिल कितना बेबस था कि उस नजारे को देखने के अलावा वो कुछ कर भी तो नहीं सकता था। वो सारी रात करवटे बदलता रहा। गुलशन को छू ने का अब उसमे हौसला नही था। सारी रात उसने वो नजारा देखा। गजब की बात थी। ना गुलशन थकी थी ना उससे रातभर खेलने वाला। खलिल रातभर नही सोया। जब सूब्हा चार बजे गुलशन थककर चूर हो गई। अपने बदन को ढीला छोड़कर चहेरे पर परम तृप्ति और दर्द मिश्रित भाव लिए गुलशन इत्मिनान से अन्जान बनकर सोई थी। शायद उसको वो भी पता नही था की उसके सारे ख्वाब उसकी जिंदगी मे आई बेहतरीन रातने छीन लिये थे। एक ही रातमे उसने अपने जिगर के टूकडे को कोसो दूर कर दीया था। उससे ये अन्जाने मे ही हुवा सही मगर बहोत तकलिफ हुई थी खलिल को तब खलिल ने हिम्मत जुटाई।