मेरा गाँव - मेरी यादें

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शाम से सुबह तक घूमता रहाअपने कुछ खोये वस्तुओं की तलाश में।पर शहरों की कालिख पुती सड़कों पर,पक्के बिल्डिंगों और स्ट्रीट लैम्प पोस्टों के बीच चक्कर काट -काट कर थक गया।नहीं मिला मेरा बचपन का खोया चाँद,टिमटिमाते तारे और वाँसवाड़ी की भगजोगनियाँ। मन विचलित है सुबह से,"गौरैयों "को देखे वर्षों बीत गये ,खपड़ैल फूस के छप्पर कहाँ,जहाँ रैन बसेरा हों इन घरेलू पक्षियों का।"चुनमुनियों","मैनों"को कोई डर नहींबागों -फुलवाड़ियों में संग-संग खेलती थीं। मैं अपनी आदत के अनुसार ,"कठफोड़वा "को निहारता,वे पेड़ों के तनों को किस कदर अपने सख्त चोंच से खोदते ।मालूम है "बगुलों"के झुंड एक साथबाढ़ के बाद सूखते