शूरवीर पृथ्वीराज चौहान

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यह कहानी शूरवीर हिन्दू राजा पृथ्वीराज चौहान की है।अपने नाना के गोद लेने के बाद मात्र ग्यारह वर्ष की उप्र में वे अजमेर और दिल्ली के शासक बन कर कुशलता पूर्वक शासन संचालित किया।यह बात राजा जयचंद को बुरी लगी और वो पृथ्वीराज को शत्रु समझने लगा था।बचपन से ही वे शब्द भेदी बाण चलाने में निपुण थे।अपने मित्र चंदबरदाई से उनका रिश्ता भाई से भी बढ़कर था राजा जयचंद की पुत्री संयोगिता से चित्र के माध्यम से प्रेम हो जाने पर जयचंद शत्रुता के लिए पुत्री का स्वयंवर में पृथ्वीराज को छोड़कर सभी राजपूत राजाओं को आमंत्रित करता है और पृथ्वीराज की द्वारपाल स्वर्ण मूर्ति दरवाजे पर रखवा देता है। खबर पाकर संयोगिता का अपहरण करके राज्य में लाकर विवाह कर लेते हैं।मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज पर आक्रमण कियाऔर वह हार गया। घायल अवस्था में बंदी गोरी को पृथ्वीराज प्राणदान दे देते हैं।लेकिन गोरी फिर से राजा जयचंद के साथ पृथ्वीराज पर हमला बोल देतें हैं।राजपूत राजाओं को जयचंद द्वारा भडकाने के कारण कोई साथ नहीं देता।चंदबरदाई और अपनी सेना के साथ पृथ्वीराज आखिर हार के गोरी द्वारा बंदी बना लिए जाते हैंं।जहाँउनकी आंखें गरम संलाखो से फोड़ दी जाती हैं।तब गोरी के अंतिम इच्छा पूछने पर वह शब्द भेदी बाण चलाने की बात कहता है।चंद के बोला दोहा खत्म होते ही पृथ्वीराज बाण से गोरी का वध कर देता है।बात में शत्रु सेना के पकड़ने से पहले वे भाग कर स्वयं को खत्म कर देते हैं।इस तरह अंतिम हिन्दू शासक का अंत हो जाता है।