1830 बूढ़ा नौकर फिलिप्पिच दबे पांव, जैसी कि उसकी आदत थी, गले में रूमाल बांधे वहां पहुंचा। उसके होंठ खूब कसकर दबे हुए थे, जिससे उसकी सांस की गंध महसूस न हो और पेशानी के ठीक बीच में सफेद रंग के बालों का गुच्छा पड़ा हुआ था। उसने अन्दर दाखिल होकर सलाम किया और मेरी दादी के हाथ में एक लम्बी चिट्ठी रख दी, जिस पर मुहर लगी हुई थी। मेरी दादी ने चश्मा उठाया और उस पत्र को शुरू से आखिर तक पढ़ डाला।