किशोरावस्था बाल्यवस्था से युवावस्था तक पहुंचने की एक कड़ी है। किशोर अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश इसी अवस्था से शुरू करते हैं। उनमें शारीरिक -मानसिक परिवर्तन परिलक्षित होने लगते हैं। उलझन में फंसे किशोर माँ-बाप से प्रथम मार्गदर्शन व प्यार की उम्मीद करते हैं । दुर्भाग्य से भौतिकवाद के अनुयायी माँ-बाप को जीवन की भागदौड़ से इतना समय कहाँ कि वे धैर्य से किशोर की जिज्ञासा शांत कर सकें। थके -हारे से वे तो बस किशोर का तन -मन झुलसा देते हैं। इस डायरी में एक किशोर की पीड़ा को भरसक व्यक्त करने का प्रयास किया गया है।