मित्रो, पहली यात्रा में मुझ पर जो विपत्तियाँ पड़ी थीं उनके कारण मैंने निश्चय कर लिया था कि अब व्यापार यात्रा न करूँगा और अपने नगर में सुख से रहूँगा। किंतु निष्क्रियता मुझे खलने लगी, यहाँ तक कि मैं बेचैन हो गया और फिर इरादा किया कि नई यात्रा करूँ और नए देशों और नदियों, पहाड़ों आदि को देखूँ। अतएव मैंने भाँति-भाँति की व्यापारिक वस्तुएँ मोल लीं और अपने विश्वास के व्यापारियों के साथ व्यापार यात्रा का कार्यक्रम बनाया। हम लोग एक जहाज पर सवार हुए और भगवान का नाम लेकर कप्तान ने जहाज का लंगर उठा लिया और जहाज पर चल पड़ा।