चोखेर बाली - 8

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शाम को महेन्द्र जब उस यमुना के तट पर जा बैठा, तो प्रेम के आवेश ने उसकी नज़रों में, साँसों में, नस-नस में, हड्डीयों के बीच गाड़े मोह रस का संचार कर दिया आसमान में डूबने सूरज की किरणों की सुनहरी वीणा वेदना की मूच्छना से झरती जोत के संगीत से झंकृत हो उठी! बारिश जैसा हो रहा था। नदी अपने उद्दाम यौवन में। महेन्द्र के पास निर्दिष्ट कुछ नहीं था। उसे वैष्णव कवियों का वर्षाभिसार याद आया। नायिका बाहर निकली है यमुना के किनारे वह अकेली खड़ी है। उस पार कैसे जाए? अरे ओ, पार करो, पार कर दो। महेन्द्र की छाती के अन्दर यही पुकार पहुँचने लगी- 'पार करो'।