शारीरिक बनावट में भिन्नता होते हुए भी जन्म से बेटा-बेटी में क्षमताओं में किसी प्रकार भिन्नता नहीं होती है ।दोनों ही कच्ची मिट्टी के समान होते हैं , उन्हें जैसा परिवेश मिलता है , उसी प्रकार की उनकी क्षमताएँ , सीमाँ , रुचियाँँ विकसित हो जाती हैं । सामाजिक परिवेश ने स्त्री जाति को अबला बना दिया है , वही उसे सशक्त भी बना सकता है । ऐसा सामाजिक परिवेश , जो स्त्रियों को सबल बना सके , स्वयं स्त्रियाँँ ही सृजित कर सकती हैं । प्रस्तुत कहानी में इस तथ्य की सशक्त ढंग से पैरवी करते हुए किसी भी स्त्री के अबला बनने के सामाजिक कारणों को मार्मिक ढंग से प्रकाशित किया गया है ।