जेल की चहारदीवारी के भीतर बंद रमेश को स्वप्न में भी यह आशा न थी कि बाहर उनका विरोधी वातावरण अपने आप ही स्वच्छ हो कर निर्मल हो सकता है। अपनी कैद समाप्त कर, जेल के फाटक से बाहर का दृश्य देख कर विस्मयानंद से उनके दोनों नेत्र विस्फरित हो उठे कि उनके स्वागत के लिए, जेल के फाटक पर लोगों का जमघट खड़ा है। हिंदू -मुसलमानों की भीड़ के आगे विद्यार्थी समुदाय खड़ा है, उनके आगे मास्टर लोग हैं। सबसे आगे, सिर पर चद्दर डाले वेणी बाबू विराजमान हैं।