हर वर्ष रमा दुर्गा पूजा बड़ी धूम-धाम से करती थी - और पूजा के एक दिन पूर्व से ही 'गाँव के सब गरीब किसानों को जी भर कर भोजन कराती थी। चारों तरफ से आदमियों का जमघट हो जाता उसके घर माता का प्रसाद पाने के लिए। आधी रात के बाद भी घर भर में पत्तल पर, पुरवों, सकोरों में भर कर मिठाई का दौर चलता ही रहता। चारों तरफ जूठन बिखर जाता। खाने की सामग्री इस तरह बिखरी रहती कि आदमी के पैर रखने तक की जगह न मिल पाती। यह बात नहीं कि उस उत्सव में केवल हिंदू ही आ कर शामिल होते हों, पीरपुर के मुसलमान भी बड़े चाव से आ कर हिस्सा लेते और माता का प्रसाद बड़ी श्रद्धा से खाते थे।