दो दिनों से बराबर पानी बरस रहा था, आज कहीं जा कर थोड़े बादल फटे। चंडी मंडप में गोपाल सरकार और रमेश दोनों बैठे जमींदारी का हिसाब-किताब देख रहे थे कि सहसा करीब बीस किसान रोते-बिलखते आ कर बोले - 'छोटे बाबू, हमारी जान बचा लो, नहीं तो गली-गली भीख माँगनी पड़ेगी! बाल-बच्चे दर-दर की ठोकरें खाएँगे।'