अब इधर का हाल सुनिए कि नूरजहाँ बेगम की माँ और बहन उसी जंगल के बाग में साहबजादी की तसल्ली और हिफाजत और इलाज और निगरानी के लिए टिके रहे। पहलेपहल तो नूरजहाँ बेगम लिहाज के मारे दिल ही दिल में 'पी कहाँ! पी कहाँ!' कह कर दिल की जरा-जरा ढारस व दिलासा देती थी, कि ऐसा न हो कि ये लोग यह आवाज सुन कर अपने दिल में कहें कि लड़की हाथ से जाती रही - बिलकुल बदलिहाज हो गई : कल की छोकरी और हमारे सामने यह बदलिहाजी! लेकिन जब जुनून ने औप ज्यादा जोर किया, और सब्र का दामन हाथ से छूटने लगा, - तो शर्म बिला इजाजत गायब-गुल्ला : किसका लिहाज और किसका खयाल, और किसकी शर्म और किसका पर्दा।