शेख़ सादी - 11

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कसीदा फ़ारसी कविता के उस अंग को कहते हैं जिसमें कवि किसी महान पुरुष या किसी विशेष वस्तु की प्रशंसा करता है। जिस प्रकार भूषण, मतिराम, केशव आदि कविजन अपने समकालीन महीपतियों या पदाधिकारियों की प्रशंसा करके नाम, धन तथा यश प्राप्त करते थे, उसी प्रकार मुसलमान बादशाहों के दरबार में भी इसी विशेष काम के लिये कवियों को सम्मान का स्थान मिलता था। उनका काम यही था कि कतिपय अवसरों पर अपने बादशाह का गुणगाणा करे। इसके लिए कवियों की बड़ी-बड़ी जागीरें मिलती थीं, यहाँ तक कि एक-एक शेर का पारितोषिक एक-एक लाख दीनार (जो पच्चीस रुपये के बराबर होता है) तक जा पहुंचता था। शिवाजी ने भूषण का जैसा सत्कार किया था, यदि यह अत्युक्ति न हो तो ईरानी कवियों के संबंध में भी उनके अलौकिक सत्कार की कथायें सच्ची मानने में कोई बाधा न होनी चाहिए।