ग़जल फारसी कविता का प्रधान अंग है । कोई कवि, जब तक वह गज़ल कहने में निपुर्ण न हो। गज़लें समाज में आदर का स्थान नहीं पाता। यों तो गज़ल शृंगार का विषय है, किन्तु कवियों ने इसके द्वारा सभी रसों का वर्णन किया है, जिसमें भक्ति, बैराग्य, संसार की असारता आदि विषय बड़े महत्तव के हैं। गज़लों के संग्रह को फ़ारसी में दीवान कहते हैं। सादी की सम्पूर्ण गज़लों के चार दीवान हैं, जिनके नाम लिखने की कोई ज़रूरत नहीं मालूम होती। इन चारों दीवानों में कोई तो युवाकाल में, कोई प्रौढ़ावस्था में लिखा गया है किन्तु उनमें कहीं भाव का वह अन्तर नहीं पाया जाता जो बहुधा भिन्न-भिन्न अवस्था की कविताओं में मिला करता है। उनकी सभी गज़लें सरलता और वाक्य निपुणता में समतुल्य हैं। और यह कवि की रचना-शक्ति का बहुत बड़ा प्रमाण है।