आजाद-कथा - खंड 2 - 87

  • 4.9k
  • 1.1k

खाँ साहब पर मुकदमा तो दायर ही हो गया था उस पर दारोगा जी दुश्मन थे। दो साल की सजा हो गई। तब दारोगा जी ने एक औरत को सुरैया बेगम के मकान पर भेजा। औरत ने आ कर सलाम किया और बैठ गई। सुरैया - कौन हो? कुछ काम है यहाँ? औरत - ऐ हुजूर, भला बगैर काम के कोई भी किसी के यहाँ जाता है? हुजूर से कुछ कहना है, आपके हुस्न का दूर-दूर तक शोहरा है। इसका क्या सबब है कि हुजूर इस उम्र में, इस हालत में जिंदगी बसर करती हैं?