आजाद-कथा - खंड 2 - 84

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इधर बड़ी बेगम के यहाँ शादी की तैयारियाँ हो रही थीं, डोमिनियों का गाना हो रहा था। उधर शाहजादा हुमायूँ फर एक दिन दरिया की सैर करने गए। घटा छाई हुई थी। हवा जोरों के साथ चल रही थी। शाम होते-होते आँधी आ गई और किश्ती दरिया में चक्कर खा कर डूब गई। मल्लाह ने किश्ती के बचाने की बहुत कोशिश की, मगर मौत से किसी का क्या बस चलता है। घर पर यह खबर आई तो कुहराम मच गया। अभी कल की बात है कि दरवाज पर भाँड़ मुबारकबाद गा रहे थे, आज बैन हो रहा है, कल हुमायूँ फर जामे में फूले नहीं समाते थे कि दूल्हा बनेंगे, आज दरिया में गोते खाते हैं। किसी तरफ से आवाज आती है - हाय मेरे बच्चे! कोई कहता है - हैं, मेरे लाला को क्या हुआ! रोने वाला घर भर और समझाने वाला कोई नहीं।