आजाद-कथा - खंड 2 - 74

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खोजी आजाद के बाप बन गए तो उनकी इज्जत होने लगी। तुर्की कैदी हरदम उनकी खिदमत करने को मुस्तैद रहते थे। एक दिन एक रूसी फौजी अफसर ने उनकी अनोखी सूरत और माशे-माशे भर के हाथ-पाँव देखे तो जी चाहा कि इनसे बातें करें। एक फारसीदाँ तुर्क को मुतरज्जिम बना कर ख्वाजा साहब से बातें करने लगा।