आजाद-कथा - खंड 2 - 73

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कोठे पर चौका बिछा है और एक नाजुक पलंग पर सुरैया बेगम सादी और हलकी पोशाक पहने आराम से लेटी हैं। अभी हम्माम से आई हैं। कपड़े इत्र में बसे हुए हैं। इधर-उधर फूलों के हार और गजरे रखे हैं, ठंडी-ठंडी हवा चल रही है। मगर तब भी महरी पंखा लिए खड़ी है। इतने में एक महरी ने आ कर कहा - दारोगा जी हुजूर से कुछ अर्ज करना चाहते हैं। बेगम साहब ने कहा - अब इस वक्त कौन उठे। कहो, सुबह को आएँ। महरी बोली - हुजूर कहते हैं, बड़ा जरूरी काम है। हुक्म हुआ कि दो औरतें चादर ताने रहें और दारोगा साहब चादर के उस पार बैठें।