जमाना भी गिरगिट की तरह रंग बदलता है। वही अलारक्खी जो इधर-उधर ठोकरें खाती-फिरती थी, जो जोगिन बनी हुई एक गाँव में पड़ी थी, आज सुरैया बेगम बनी हुई सरकस के तमाशे में बड़े ठाट से बैठी हुई है। यह सब रुपए का खेल है। सुरैया बेगम - क्यों महरी, रोशनी काहे की है? न लैंप, न झाड़, न कँवल और सारा खेमा जगमगा रहा है। महरी - हुजूर, अक्ल काम नहीं करती, जादू का खेल है। बस, दो अंगारे जला दिए और दुनिया भर जगमगाने लगी।