आजाद-कथा - खंड 1 - 49

  • 5.8k
  • 1.4k

एक आलीशान महल की छत पर हुस्नआरा और उनकी तीनों बहनें मीठी नींद सो रही हैं। बहारबेगम की जुल्फ से अंबर की लपटें आती थीं रूहअफजा के घूँघरवाले बाल नौजवानों के मिजाज की तरह बल खाते थे सिपहआरा की मेहँदी अजब लुत्फ दिखाती थी और हुस्नआरा बेगम के गोरे-गोरे मुखड़े के गिर्द काली-काली जुल्फों को देख कर धोखा होता था कि चाँद ग्रहण से निकला है।