आजाद-कथा - खंड 1 - 43

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शाहजादा हुमायूँ फर महरी को भेज कर टहलने लगे, मगर सोचते जाते थे कि कहीं दोनों बहनें खफा न हो गई हों, तो फिर बेढब ठहरे। बात की बात जाय, और शायद जान के भी लाले पड़ जायँ। देखें, महरी क्या खबर लाती है। खुदा करे, दोनों महरी को साथ ले कर छत पर चली आवें। इतने में महरी आई और मुँह फुला कर खड़ी हो गई। शाहजादा - कहो, साफ-साफ। महरी - हुजूर, क्या अर्ज करूँ! शाहजादा - वह तो हम तुम्हारी चाल ही से समझ गए थे कि बेढब हुई। कह चलो, बस। महरी - अब लौंडी वहाँ नहीं जाने की। शाहजादा - पहले मतलब की बात तो बताओ कि हुआ क्या?