आजाद-कथा - खंड 1 - 40

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सुबह का वक्त था। मियाँ आजाद पलंग से उठे तो देखा, बेगम साहबा मुँह खोले बेतकल्लुफी से खड़ी उनकी ओर कनखियों से ताक रही हैं। मिरजा साहब को आते देखा, तो बदन को चुरा लिया, और छलाँग मारी, तो जैनब की ओट में थीं। मिरजा - कहिए, आज क्या इरादे हैं? आजाद - इस वक्त हमको किसी ऐसे आदमी के पास ले चलिए, जो तुरकी के मामलों से खूब वाकिफ हो। हमें वहाँ का कुछ हाल मालूम ही नहीं। कुछ सुन तो लें। वहाँ के रंग-ढंग तो मालूम हों।