आजाद-कथा - खंड 1 - 38

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खोजी ने एक दिन कहा - अरे यारो, क्या अंधेर है। तुम रूम चलते-चलते बुड्ढे हो जाओगे। स्पीचें सुनीं, दावतें चखीं, अब बकचा सँभालो और चलो। अब चाहे इधर की दुनिया उधर हो जाय, हम एक न मानेंगे। चलिए, उठिए। कूच बोलिए। आजाद - मिरजा साहब, इतने दिनों में खोजी ने एक यही तो बात पक्की कही। अब जहाज का जल्द इंतिजाम कीजिए। खोजी - पहले यह बताइए कि कितने दिनों का सफर है? आजाद - इससे क्या वास्ता? हम कभी जहाज पर सवार हुए हों तो बताएँ।