एक दिन मियाँ आजाद सराय में बैठे सोच रहे थे, किधर जाऊँ कि एक बूढ़े मियाँ लठिया टेकते आ खड़े हुए और बोले - मियाँ, जरी यह खत तो पढ़ लीजिए, और इसका जवाब भी लिख दीजिए। आजाद ने खत लिखा और पढ़ कर सुनाने लगे - मेरे खूसट शौहर, खुदा तुमसे समझे! आजाद - वाह! यह तो निराला खत है। न सलाम, न बंदगी। शुरू ही से कोसना शुरू किया। बूढ़े - जनाब, आप खत पढ़ते हैं कि मेरे घर का कजिया चुकाते हैं? पराये झगड़े से आपका वास्ता? जब मियाँ-बीबी राजी है, तब आप कोई काजी हैं!