क़र्ज़ की पीते थे

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एक जगह महफ़िल जमी थी। मिर्ज़ा ग़ालिब वहां से उकता कर उठे। बाहर हुआदार मौजूद था। उस में बैठे और अपने घर का रुख़ किया। हवादार से उतर कर जब दीवान-ख़ाने में दाख़िल हुए तो क्या देखते हैं कि मथुरा दास महाजन बैठा है।