एक ज़ाहिदा, एक फ़ाहिशा

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जावेद मसऊद से मेरा इतना गहरा दोस्ताना था कि मैं एक क़दम भी उस की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उठा नहीं सकता था। वो मुझ पर निसार था मैं उस पर हम हर रोज़ क़रीब क़रीब दस बारह घंटे साथ साथ रहते।