पंद्रह दिन बाद विपिन की हालत में कुछ सुधार हुआ उनका दाहिना पैर तो लुंज पड़ गया था पर तोतली भाषा में वो कुछ कुछ बोल सकते थे सबसे बुरी गत उनके सुंदर मुख की हुई थी वह इतना टेढ़ा हो गया था जैसे कोई रबर के खिलौने को खिंच कर बढ़ा दे बैटरी की मदद से जरा देर के लिये बैठे या खड़े तो हो जाते थे लेकिन चलने फिरने की ताकत बिलकुल ही नहीं थी कुछ दिन लेटे लेटे उन्हें ख्याल आया और आइना उठा कर अपना मुंह देखने लगे उन्हें लगा की इतना कुरूप आदमी उन्होंने पहेले कभी नहीं देखा था, और फिर आहिस्ता से बोले...