सवाल तो हजारो उठते हे पर धर्म से लिप्त अंधे व्यक्तिओ द्वारा इन्हें दबा दिया जाता हे, रोज कई सवाल उठते हे जिनका हम जवाब ढूंढने की कोशिश में लग जाते हे पर इश सच से अंजान होने के बावजूद क्या हमने कभीभी उसे ढूंढने का सोचा तक हे कोशिश तो बहोत कोषो दूर की बात है भला ये श्रधा या आश्था कही जाये या फिर इशे डर के नाम से दर्शाया जाय ? इशमें भी अब आप सोचेंगे की भला बात तो आपकी सच हे पर हम इतने मुर्ख भीतो नहीं की भगवान ओर आश्था पर सवाल उठाये ? हम अकेले हितो नहीं जो इन्हें मानते है ? दुनिया लम्बी चौड़ी है पर हर एक धर्म में भागवानोकी कहा कमी हे फिर वो इतना नहीं सोचते ? फिर शुरुआत हम ही क्यों करे ? और भला उनपर सवाल करके हम क्या पापके भोगी बने ? आखिर किताबे, धर्मगुरु, इतिहास, पुराण ओर सभी तरह के धर्मग्रंथ सब जुठ थोड़े ना हे ? ओर फिर मंदिर, मस्जिद ओर चर्च भीतो इसबात का अद्भुत पुरावा हे की ये सत्य है जूठ नहीं ? ओर भला आखिर कर उन्हें जूठ माने ही क्यों ? apne sujav jarur niche boksh me bataye...