गर्मी बीत गयी बरसात के दिन आये, प्रभुदास की दशा दिनों दिन बिगड़ रही थी वो अपना ज्यादातर समय अपने रोग पर अलग अलग डॉक्टरों द्वारा की गई व्याख्या पढ़ा करता था उनके अनुभवो से प्रभुदास अपनी तुलना करता रहता था पहले कुछ दिनों तक तो वह अस्थिरचित सा हो गया था दो चार दिन भी दिशा संभली रहती तो पुस्तके देखने लगता और अपनी विलायत यात्रा की चर्चा करता रहता था और जब दो दिन भी रोग का प्रकोप बढ़ जाता तो अचानक ही अपने जीवन से निराश हो जाता था और फिर एक दिन उसको विश्वास हो गया की अब वो इस रोग से कभी भी मुक्त नहीं हो सकता....