पशुपति वृक्ष के नीचे से आ कर सामने खड़ा हो गया कृष्णा उन्हें पहचान गई और कठोर स्वर में बोली, आप यहाँ क्या करते हैं? बतलाइए, यहां आपका क्या काम है? बोलिए जल्दी पशुपति की सिट्टी पिट्टी गम हो गई इस अवसर के लिये उसने जो प्रेम वाक्य रटे थे वे सब विस्मृत हो गये सशंक होकर बोला, कुछ नहीं प्रिये आज संध्या समय जब मैं आपके मकान के सामने से आ रहा था तब मैंने आपको अपनी बहन से कहते सुना की आज रात को आप इस वृक्ष के नीचे बैठकर चांदनी का आनन्द उठाउंगी मैं भी आपसे कुछ कहने के लिये...